Thursday, September 30, 2010

मेरी पहचान है अमन और चैन;जो तुम्हारे हाथ में है !


मैं हूँ शहर इन्दौर जिसे शिनाख़्त देती है मेरी वह आबोहवा जिसमें भजन,अज़ान,शबद और नवकार मंत्र एक साथ महकते हैं.मेरे रहवासी,मेरे प्यारे-प्यारे बाशिंदे;मेरे बच्चे मेरी पहचान को मुकम्मिल करते हैं.रमज़ान और देवी आराधना पर्व के दौरान होने वाले रतजगे मुझे इत्मीनान देते हैं कि मेरे बच्चे कितनी पवित्र भावना से नेक काम में लगे हैं.मेरे दामन से उड़ कर जाती हवन और लोभान की ख़ुशबू मुझे लम्बी उम्र देती है.मैंने बड़े भरोसे और एहतेराम से इस शहर की ज़िम्मेदारी उन लोगों को सौंप रखी है जो अग्रवाल,जैन,कुलकर्णी,ख़ान,रा्मनानी,त्रिवेदी,माहेश्वरी,अंसारी,सलूजा
या ईरानी होने से पहले इन्दौरी होने में फ़ख्र महसूस करते हैं.मेरे बच्चों का असली गौत्र,घराना और ख़ानदान इन्दौरी है.मेरी तहज़ीब जैसा उजला रंग तो पूरी दुनिया मे आपको कहीं और नहीं मिलेगा. मैत्रेयी पद्मनाभन वहीद्दुद्दीन डागर से ध्रुपद सीखती थी और बाबू ख़ाँ बीनकार गोर्वधननाथ मंदिर श्रीनाथजी के पदों पर संगति करते थे . तबलानवाज़ सुलेमान ख़ाँ भूतेश्वर महादेव पर जाकर ब्रह्मानंद का भजन सुनाते;और उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब शनि मंदिर में जाकर मेरूखण्ड तानों का सुरीला शामियाना तानते .ये तो थे गुज़रे ज़माने के कलेवर लेकिन अब मेरी नई पौध के जलवे भी शहर-शहर और डगर-डगर दमकते हैं.पूरे देश के विकास में मैं कभी कैट,आई.आई.एम.या आई.आई.टी. का परचम उठा कर बता देता हूँ कि मुझे कमज़ोर मत आँकना.इंजीनियरिंग मैनेजमेंट और मेडीकल की शानदार तालीम का बड़ा पता हूँ मैं.

थपेड़े तो मेरे बच्चों की ज़िन्दगी में आते ही रहते हैं लेकिन वे हैं कि हर दौर में उबर कर एक नई सुबह का आग़ाज़ करते हैं. रचते हैं एक ऐसी नईदुनिया जिसका चर्चा करते गौरव से माथा ऊंचा हो जाता है. मुझे अभी बहुत आगे जाना है. मैं अब एक नया शहर बनने की तैयारी में हूँ.मेरी सड़कें चमचमाने वालीं हैं.हरियाली लहलहाने वाली है. मेरे बच्चे जागरूक नागरिक हैं इन्हें मेरी परवाह वैसे ही है जैसे वे अपने माता-पिता और घर के दीगर बुज़ुर्गों की करते हैं.मेरा बच्चा बशीर किसी मासूम मनसुख को रोता नहीं देख सकता. जनक जीजी किसी फ़ातिमा को अलिफ़-बे की तालीम दे सकतीं हैं . सिस्टर नरोन्हा जसमीत कौर की जचकी निर्विघ्न करवा सकतीं हैं.ये हूँ मैं.मेरे बहादुर ख़ाँ घोडेवाले की घोड़ी से सेठ सुजानमल का बेटा बारात लेकर तोरण मार आता है और सरताज भाई की सेहराबंदी के बाद मास्टर कामले का राजकमल बैंड सुरीली धुनों का जादू जगाता है.राहत इन्दौरी का गीत कल्पना झोकरकर गाती है और रमेश मेहबूब की ग़ज़ल बुंदू ख़ाँ की खरज भरी आवाज़ में लुभाती है.ये है मेरी पहचान.

सनद रहे ! मेरे बाशिंदे ये याद नहीं रखते कि कितनी बार इन्दौर में कर्फ़्यू लगा था या कब पथराव हुआ था....वे तो ये याद रखते हैं शालिनी ताई ने कितने बच्चों को पढ़ाया है या बाबूलाल पाटोदी किस तरह से नर्मदा को इन्दौर लाने के लिये सड़क पर उतरे थे या यूनियन कार्बाइड के कचरे को मुझसे दूर करने के लिये डॉ.भरत छापरवाल ने आंदोलन चलाया था,या होमीदाजी ने मज़दूरों के हक़ के लिये कैसा अलख जगाया था.दौलतगंज एकता पंचायत पर कैसे हिन्दू-मुस्लिम गले मिले थे या गुरूजी गोलवलकरजी ने पं.रामनारायण शास्त्री से इन्दौर में इलाज करवाया था. हुकुमचंदजी ने अपनी कोठी में गाँधीजी को भोजन करवाया था और बाबूभाई महिदपुरवाला ने ईद पर हर साल अपने हिन्दू दोस्तो को किस ख़ुलूस से सिवैया का स्वाद चखाया था. कौन से सन में बाबा आमटे भारत जोड़ो यात्रा लेकर आए थे और कब मदर टैरेसा इन्दौर आईं थीं.किन किन मुशायरों में नूर इन्दौरी की ग़ज़लों ने देश के कौन कौन से शहरों में रंग जमाया था और कौन सी मिल में नीरज और माया गोविंद ने कविता का जादू रचाया था. मेरे बाशिंदे तो ये याद रखते हैं कि मेरे नाम को परवाज़ देने की ज़िम्मेदारी संदीप मानुधने,नरेन्द्र हीरवानी,संजय जगदाले,अखिलेश,अमय खुरासिया,नमन ओझा,ऋषभ मेहता,चित्रांगना आगले रेसवाल,हेता दवे,डॉ.गिरीश कवठेकर,विनय झैलावत ने क्या ख़ूब निभाई है.

बस कभी कभी कलेजा किसी अज्ञात भय से काँप उठता है.किसी अनहोनी में जब मेरे ही बाशिंदे,बच्चे सड़कों से गुम हो जाते हैं और घर में क़ैद हो जाते हैं तो मेरा दिल ज़ार-ज़ार रोने लगता है.मेरी ख़ुशी तो छप्पन दुकान,राजबाड़ा,बड़ा सराफ़ा,ट्रेज़र आइलैण्ड की चहक से आबाद होती है.मैं अपने बच्चों से यही कहना चाहता हूँ कि मेरी पहचान की रंगीन तस्वीर प्रभु जोशी और मिर्ज़ा इस्माईल बेग़ दोनो के हाथ से नुमाया हुई है. इस पहचान पर कालिख मत लगने देना.. थोड़ा धीरज धरोगे तो हर सुबह अमन का सूरज निकलेगा.हम सब एक हैं,एक रहेंगे........तुम संभल गए तो तुम्हारी नस्लें सँवर जाएंगी.....फ़ैसला तुम्हे करना है. मैं तुम्हारा अपना हूँ या बेगाना...ये तुम्हें बताना है. तुम एक व्यावसायिक शहर के अमन पसंद नागरिक हो ये तुम्हें जताना है....

Thursday, January 28, 2010

११ फ़रवरी को भरोसा सम्मान से नवाज़े जाएंगे जावेद अख़्तर…



जानेमाने शायर और गीतकार जावेद अख़्तर को इस बरस का भरोसा सम्मान दिया जा रहा है.
ग़ौरतलब है कि बीते दो सालों से भरोसा न्यास एक शानदार मुशायरे की दावत इन्दौर में दे रहा है और इसके अंतर्गत देश के जाने माने शायर/कवि काव्य-प्रेमियों से रूबरू हो रहे हैं.पहले बरस टीवी पत्रकार संजॉय सिंह और दूसरे बरस निदा फ़ाज़ली भरोसा सम्मान से नवाज़े जा चुके हैं. पिछले बरस ये मुशायरा सुबह तीन बजे तक चलता रहा था और वरिष्ठ कवि नीरज और बुज़ुर्ग शायर बेकल उत्साही की जब बारी आई तब मुशायरे को रोकना पड़ा था. इस साल इन दो नामचीन क़लमकारों से ही मुशायरे का आग़ाज़ होगा. मेज़बान की तारीफ़ की जानी चाहिये क्योंकि इससे श्रोताओं और इन दो अज़ीम शख़्सियतों के प्रति आभार का प्रकटीकरण भी तो होगा.

बहरहाल हाल इस बरस जब ये सम्मान जावेद साहब को दिया जा रहा है इस जल्से का क़द और भी बड़ा हो गया है. ११ फ़रवरी को मुनक़्किद इस मुशायरे के एक दिन पहले मुनव्वर राना जावेद अख़्तर की काव्य-यात्रा और ज़िन्दगी पर एक गुफ़्तगू करेंगे. भरोसा सम्मान के इस प्रंसग को विशिष्ट बनाएगी जावेद अख़्तर की शरीक़े हयात और अभिनेत्री शबाना आज़मी, बेटे फ़रहान अख़्तर और बेटी ज़ोया की मौजूदगी. उम्मीद है कि बतौर ख़ास मेहमान फ़िल्म कलाकार राजेश खन्ना और निर्देशक महेश भट्ट भी भरोसा न्यास के आयोजन में शरीक़ हो सकते हैं.

Sunday, December 27, 2009

डॉ.राहत इन्दौरी के ग़ज़ल संग्रह का विमोचन 8 जनवरी को.

इन्दौर की अदबी फ़िज़ाँ को यश देने वाले नामचीन शायर डॉ.राहत इन्दौरी का नया ग़ज़ल संग्रह छपकर तैयार है और ख़ुशी की बात यह है कि ये हिन्दी में छपा है. दुनिया भर में अपनी शायरी से छा जाने वाले राहत भाई की इस नई किताब का इजरा(विमोचन) 8 जनवरी को प्रस्तावित है और इस मौक़े पर एक मुशायरा भी आयोजित किया जा रहा है. ख़बर है कि कोई मशहूर हस्ती राहत भाई के इस मजमुए का विमोचन करने इन्दौर तशरीफ़ ला सकती है. 2 जनवरी को राहत भाई का जन्मदिन है और इसके ठीक बाद यह कार्यक्रम होने जा रहा है.

Tuesday, July 8, 2008

इस मीठे शहर में…सदभाव हो रोशन

सदभाव था रोशन
इस मीठे शहर में
ये कौन यहॉं बो गया
दुःख-दर्द के रोपे
कौन इसे दे गया
नफ़रत के ये तोहफ़े
फूटे अब करुणा की नदी
इसकी नज़र से
अब और नहीं रोना इसे
मनहूस ख़बर से
ये व़क़्त है आओ
मिलजुल के विचारें
शांति से चलो आज
हमदर्दी उचारें
ग़ालिब की ग़ज़ल
तुलसी की चौपाई उधर से
हर एक डगर से
हर एक अधर से
इस मीठे शहर में
सदभाव हो रोशन


-नईदुनिया में प्रकाशित वरिष्ठ कवि श्री नरहरि पटेल की ताज़ा कविता.

Sunday, July 6, 2008

कर्फ़्यू के बाद थोड़ी हवा भी आने दो !

सारे चैनल देख लिये
सारे अख़बार पढ़ लिये
रिश्तेदारों से भारत भर
में बातें हो गईं
पडौसी से अबोला था
वह भी टूट गया
जो न पढ़ने थे

वे चिट्ठे भी पढ़ लिये
गली में क्रिकेट भी हो गया
दाल-चावल भी खा लिये कई बार
राजनीति भी हो ली
और ख़ून की होली
सारे शगुन तो हो गए
कर्फ़्यू भी चल गया दिन रात
सियासत की बिछी बिसात
अब थोड़ी हवा आने दो न

Friday, July 4, 2008

कर्फ़्यू के साये में ख़ामोश मेरे शहर से एक इल्तिजा !

नसीब से मिलता है
किसी शहर को अमन
नसीब से मिलती है धूप
गली मोहल्ले की रौनक़े
बच्चों की आवाज़ें,शोर

नसीब से मिलता है
दरवाज़े पर दूध
अख़बार और सब्ज़ियाँ
मिलते हैं नसीब से पास-पडौस
सोहबतें और ठहाके

नसीब से मिलता है
विश्वास,अपनापन और हँसी
नसीब से ही मिलते हैं
भाईचारे और जज़बात

नसीब से ही मिलता है
किसी शहर को इत्मीनान
सुक़ून की पहचान
और ज़िन्दगी बख़्शते अवाम

तो जो मिल गया है नसीब से
उसे मत गँवाइये
अपने शहर को उसकी पहचान दिलवाइये
उसे फ़िर रफ़्तार पर लाइये
रोकिये मत उसके स्पंदन को
आप ही को करना पड़ेगा ये सब
हाँ , करना ही पड़ेगा
क्योंकि कुछ काम नसीब के भरोसे
नहीं छोड़े जा सकते
उसके लिये कीजिये कुछ ऐसी जुम्बिश
कि दुनिया कहे इसी का नाम तो
है ज़िन्दादिली
शहर की ज़िन्दादिली उसमें
रहने वाले लोगों से होती है
वह आप से होती है
लोग जानते हैं
आप ज़िन्दादिल हैं.

ये सिर्फ़ एक शहर नहीं ; इंसानियत की आवाज़ है !

झुलस रहा मेरा शहर
कोई चाह रहा है करो इसे बंद
कोई चाह रहा है खुला रहे ये
ग़रीब कुलबुला रहा है महंगाई में
अमीर मना रहा है पिकनिक
उसे मिल गया है सप्ताहांत का एक बहाना
केसरिया ने कहा करो बंद
हरा कहेगा अब करो बंद
रंगो में बटा मेरा शहर
अमन पसंद है
इसकी तहज़ीब में
अमीर ख़ाँ की तान
और विष्णु चिंचालकर के रंग हैं
मैडम पद्मनाभन का है संस्कार
इसके स्वाद में है जलेबी-पोहे की चटख़ार
लौट आएगा ये शहर जल्द ही रूठे बेटे की तरह
सुबह का भूला जो ठहरा
अभी कहाँ गूँजी है पूरी तरह से स्कूल में
जा रहे नये बच्चों की किलकारियाँ
अभी कहाँ महकी है बारिश की बूँद
ये तो शहर है शानदार रिवायतों का
भूला देता है ज़ख़्म , लगा देता है मरहम
ये शहर है अरमानों का
जज़बातों का
नेक इरादों का
मुझे इस पर नाज़ है
ये सिर्फ़ एक शहर नहीं
इंसानियत की आवाज़ है